हमारा प्रयास सामाजिक उत्थान एन.जी ओ ने किराड़ी के प्रेम नगर में सीनियर सेकेंडरी स्कूल खुलवाने के लिए 6 वर्षो तक संघर्ष किया।
दिल्ली का किराड़ी प्रेम नगर क्षेत्र, प्रवासी मजदूरों का क्षेत्र है जो कि अनाधिकृत कालोनियां हैं, जहां की आबादी लगभग 8-10 लाख है अगर सिर्फ प्रेम नगर 2 & 3 के आबादी की ही बात करें तो यहां की आबादी भी तीन लाख के आसपास होगी जहां सबसे ज्यादा 85% आबादी मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं इस क्षेत्र के ज्यादातर प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार से आए हैं जिन्होंने मेहनत मजदूरी करके 25-30 गज जमीन जमिन्दारो से किश्तों पर लेकर एक छोटा सा घर बनाया है जिनका सपना सिर्फ यही था कि अपने बच्चों का लालन-पालन करते हुए उन्हें बेहतर शिक्षा दिला पाएं परंतु सबसे दुःख की बात तो यह है कि इस क्षेत्र की इतनी आबादी होने के बाद भी एक सरकारी स्कूल का नहीं होना । हजारों के तादाद में इस प्रेम नगर के बच्चे को खतरनाक रेलवे लाइन पार व बहुत ही व्यस्त सड़कों को पार करके तीन चार किलो मीटर या फिर इससे भी ज्यादा दूर के स्कूल जाना पड़ता है, कोई नांगलोई, कोई मुंडका तो कुछ पश्चिम विहार जैसे दूर दराज के स्कूलों में जाने को मजबूर हैं।
इससे भी ज्यादा गंभीर और दुःख की बात तो यह है कि रेलवे लाइन पार करने के क्रम में कई बच्चे को अपनी जान गंवानी पड़ती है स्कूल जाने और आने के क्रम में । कई बच्चे इस ख़तरनाक रेलवे लाइन पार करते हुए मौत के मुंह में समा गए। परंतु क्षेत्र के किसी जनप्रतिनिधि ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। ये सारी घटनाएं यहां के बच्चों के सामने घटती रही और लोग लाचार, मजबूर होकर देखते रहे किसी ने कोई आवाज नहीं उठाई। मैं भी इस अमानवीय और दुःखद घटनाओं को देखकर दंग रह गया कि आखिर यहां के लोगों का क्या कसूर है?
यहां के बच्चे क्यों अपनी जान पर खेलकर क्षेत्र से बाहर इतनी दूर के स्कूल जाने को मजबूर है । क्या इन बच्चों को शिक्षा लेने का अधिकार नहीं है? आखिर ये गरीब बच्चे कैसे और कहां बिना किसी जोखिम के स्कूल जाएं? बहुत से बच्चे, खास कर लड़कियों ने तो स्कूल जाना ही बंद कर दिया। हमारे लिए काफ़ी अधिक चिंता की बात होती जा रही थी। यह गरीब बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ाई कर नहीं सकते हैं क्योंकि इनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं ।
Hamara Prayas Samajik Utthan NGO |
इन बच्चों की सिर्फ एक ही परेशानी नहीं थी, अगर ये हिम्मत जुटा कर दूर दराज के स्कूल जाने को तैयार हैं भी तो सड़कें इतनी खराब और सड़कों पर जलभराव के कारण इनके स्कूल का ड्रेस भी गंदा हो जाता था और है । फिर हमारी टीम ने इन बच्चों के संघर्षपूर्ण स्कूली जीवन से मुक्ति दिलाने की लड़ाई लड़ने को खुद को तैयार किया और इस लड़ाई में हमारी टीम पूर्ण रुप से तैयार हो गई और फिर शुरू हुआ इन क्षेत्र के बच्चों के लिए स्कूल और अच्छी सड़क की लड़ाई । फिर हम कुछ साथियों ने ऐसे ही संगठित होकर क्षेत्र में स्कूल बनाने तथा अभी स्कूल जाने वाले सड़कों को बनाने की मुहिम छेड़ दी। इस क्रम में हम लोगों ने क्षेत्रीय निगम पार्षद , क्षेत्र के विधायक और तमाम लोगों से संपर्क करना शुरू किया तब जाकर हमें एक सफलता प्राप्त हुई वो सफलता थी एक अच्छी सड़क की । परंतु हमारी लड़ाई अभी पुरी तरह से बाकी ही थी, वो लड़ाई थी यहां इसी क्षेत्र में एक सरकारी स्कूल निर्माण करवाने की ।
बहुत से लोग इस बात को सुनकर हमारी हंसी उड़ाते थे कि ऐसे अनाधिकृत कॉलोनी में कैसे स्कूल बन सकता है? यहां तक कि यहां के जनप्रतिनिधियों ने भी हमारा मजाक उड़ाना शुरु कर दिया लेकिन हमारे टीम के लोगों ने कभी हिम्मत नहीं हारी और हम सब इस संधर्ष के पथ पर चलते रहे और अपनी कोशिश जारी रखी, पर नतीजा कुछ खास नहीं निकल रहा था। फिर हम सबने एक संगठन बनाने को सोचा और बना दिया एक संगठन जिसका नाम रखा ,हमारा प्रयास सामाजिक उत्थान, अभी स्कूल निर्माण का संधर्ष तो बाकी ही था जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय था..........
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